सोमवार, दिसंबर 21, 2015

पाठक मंच भोपाल हेतु मेरे उपन्यास ‘‘कस्बाई सिमोन’’ पर लेखिका डाॅ. (श्रीमती) आनंद सरदाना द्वारा लिखी गई समीक्षात्मक टिप्पणी

Novel of Dr Sharad Singh - " Kasbai Simon "
डाॅ. शरद सिंह की पुस्तक ‘‘कस्बाई सिमोन’’ पर समीक्षा

निःसंदेह हर व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार जीवन जीने का अधिकार है परन्तु हमें यह भी मानना पड़ेगा कि हम समाज की परम्पराओं वाली मानसिकता को नकार कर नहीं जी सकते। मनुष्य स्वतंत्र पैदा होता है परन्तु हर जगह वह बंधनों में बंधा होता है। सागर की भी तो सीमा होती है। समसामयिक समस्याओं में जिस तरह समलैंगिक विवाह चुनौती बन रहे हैं उसी तरह लिव इन रिलेशन भी बहुत बड़ा भ्रम है या इसे मृगतृष्णा भी कह सकते हैं। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जिस समाज में हम रहते हैं वहां के नियम, मर्यादा बनाए रखने में ही जीवन सुखी रह सकता है। और समाज भी उन्नति और प्रगति की ओर अग्रसर हो सकता है। अपवाद भी होते ही हैं जो समय, नियम कानून तोड़ कर अलग रास्ते बनाते हैं परन्तु शादी न कर के ‘लिव इन रिलेशन में रहने वालों का भविष्य अंधेरा ही रहता है। इस उपन्यास का नायक रितिक तो शादी कर के समाज का हिस्सा बन जाता है परन्तु सुगन्धा अपनी सुगन्ध खो कर भी दिशाहीन ही रहती है।
              लेखिका ने बहुत ही मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से ‘लिव इन रिलेशन’ का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है जो युवा पीढ़ी को मार्गदर्शन दे सकता है।
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        डाॅ (श्रीमती) आनंद सरदाना
       एम.177 गौतम नगर
      भोपाल -462023 

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