सोमवार, जून 13, 2011

धांसू साहित्य लेखन के अनुभूत नुस्खे (व्यंग लेख)..पार्ट फोर

- डॉ. शरद सिंह                      
पांचवा अध्याय

नुस्खा नंबर तीन
     


        

धांसू साहित्य लेखन का तीसरा अनुभूत नुस्खा है - इतिहास कथा लिखना। 
    यह और भी मजेदार और बहुत कुछ निरापद लेखन है। इसके लिए आपको बस इतना करना है कि इतिहास में से कोई ऐसा व्यक्ति चुन लीजिए जिसके बारे में सभी लोग जानते हों। फिर उस बहुचर्चित व्यक्ति के बारे में प्रचलित धारणा के विपरीत कुछ ऐसा लिखिए कि साहित्य जगत में क्या, सकल जगत में बवाल मचे बिना न रहे। 
  
   वह व्यक्ति तो सदियों पहले कालकवलित हो चुका होगा अतः वह तो आपकी पेशी करवाने से रहा। इसलिए उसकी ओर से तो कोई संकट रहेगा नहीं। रहा सवाल बुद्धिजीवियों का तो वे अपनी बुद्धिबल पर आपको प्रसिद्धि की ऊंचाइयों पर पहुंचा कर ही दम लेंगे। 
       
जी हां, आप तो लिख-लुखा कर एक कोने में चुपचाप बैठ जाएंगे लेकिन बुद्धिजीवियों के अखाड़े में महीनों तक आपके लेखन को ले कर ताल ठोंके जाते रहेंगे। एक पक्ष आपको सच्चा और ईमानदार कहेगा तो दूसरा पक्ष आपको झूठा और चोर कहेगा। आप अपनी पुस्तक के प्रकाशक के साथ बैठ कर बुद्धिजीवियों की इस नूराकुश्ती का जी भर कर आनंद लीजिए और एक धांसू साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित हो जाइए।

               उपसंहार 
           अर्थात भगवान आपका भला करे!

         मैंने आपको ये जो तीन नुस्खे गिनाए, इन तीनों नुस्खों में से कोई भी एक नुस्खा अपना कर आप स्वयं का जीवन महान बना सकते हैं और एक धांसू साहित्यकार बन सकते हैं। 
      आप विश्वास कीजिए कि ये तीनों नुस्खे अलग-अलग अनेक  साहित्यकारों के द्वारा शतप्रतिशत अनुभूत नुस्खे हैं। इन नुस्खों को अपना कर कई साहित्यकार अपना जीवन धन्य कर चुके हैं। आज साहित्य में उनकी रेटिंग’ ‘टॉपपर है और वे उत्तम कोटि के बिकाऊ यानी बेस्ट सेलर साहित्यकार माने जाते हैं। 
        
  ऐसे धांसू साहित्यकारों की पुस्तकें प्रकाशकों को भी दरकार होती है। बहुबिकाऊ पुस्तक  भला कौन-सा प्रकाशक नहीं चाहेगा? उसे भी तो अपनी रोजी-रोटी चलानी होती है और बाल-बच्चे पालने होते हैं। और, सीधा-सादा, शालीन और शांत किस्म का साहित्य पढ़-पढ़ कर बोर हो चुके  पाठक तो इस बात की प्रतीक्षा करते ही करते हैं कि यह धांसू साहित्यकार अपनी अगली पुस्तक में कौन-सा नया धांसू आईटम परोसने वाला है। वे उत्कण्ठापूर्वक उसकी अगली पुस्तक की प्रतीक्षा करते हैं। पुस्तक का कलेवर समझ में आए या न आए लेकिन बहुचर्चित की चर्चा करके स्वयं को बुद्धिमान जताने का अवसर नहीं चूकते हैं। इससे पुस्तक लिखने वाले को ख्याति का एक और बोनस मिल जाता है।  
        तो फिर देर किस बात की है? धांसू साहित्य लेखन के इन अनुभूत नुस्खों में से किसी को भी अपनाइए और एक धांसू साहित्यकार बन जाइए। भगवान आपका भला करे!
                                 (समाप्त)

शुक्रवार, जून 10, 2011

धांसू साहित्य लेखन के अनुभूत नुस्खे (व्यंग लेख)....पार्ट थ्री

- डॉ. शरद सिंह

चौथा अध्याय

नुस्खा नंबर दो

    धांसू साहित्य लेखन का दूसरा अनुभूत नुस्खा है - पराई कथा लिखना। 

यह भी एक महत्वपूर्ण और कारगर नुस्खा है। इस प्रकार के साहित्य लेखन में आपको चंद ख्यातिनाम लोगों के जीवन में ताक-झांक करनी होगी और उसे मिर्च-मसाले के साथ लिख डालना होगा। इसे आप संस्मरण, वृत्तांत आदि अपनी सुविधानुसार कुछ भी नाम दे सकते हैं। इसमें आप अपनी स्मरण शक्ति की पैनीधार को चमकाते हुए ऐसे किसी भी व्यक्ति की वो लुभावनी और चौंकाने वाली सच्ची-झूठी बातें लिख सकते हैं जिन्हें पढ़ कर पाठक तो अवाक् रह ही जाए, वह व्यक्ति भी हकबका जाए जिसके बारे में आपने लिखा है। 
     अब आपके लिखे को पढ़ कर पहले तो वह व्यक्ति अपने आपको टटोलेगा कि वह आपसे पंगा ले सकता है या नहीं। यदि नहीं ले सकता होगा तो मन मार कर चुप रह जाएगा, किन्तु यदि उसमें आपसे पंगा लेने की दम होगी तो वह आप पर पलटवार करेगा और बस, आपका काम बन जाएगा। आप इस तथ्य को एक फुट उछाल कर बोरी भर ख्याति बटोर सकते हैं। 
       आपको बस, इतना ही करना होगा कि स्वयं को सच्चाई का सगावाला बताते रहिए और पलटवार करने वाले को मिर्ची लगने से तिलमिलाया हुआ कहते रहिए।  वो गाना है न कि ‘तुझको मिर्ची लगी तो मैं क्या करूं....’ बस, इसी स्टाईल में। वो जितना तिलमिलाएगा, तिलमिला कर बयानबाजी करेगा उतनी ही आपको पब्लीसिटी मिलेगी और आप उसके मत्थे सुर्खियों में बने रहेंगे।
    ....इस नुस्खे को अपनाने पर आपकी धांसू साहित्यकार की साख को स्थापित होने से कोई नहीं रोक सकता है। 
                       क्रमशः .......

शनिवार, जून 04, 2011

धांसू साहित्य लेखन के अनुभूत नुस्खे (व्यंग लेख)....पार्ट टू

- डॉ. शरद सिंह

        
 दूसरा अध्याय
धांसू साहित्य क्या है?

धांसू साहित्य की महिमा के बाद अब लाख रुपए का सवाल उठता है कि यह धांसू साहित्य है क्या? इस लखटकिया सवाल के दुमछल्ले सवाल हैं कि इसे लिखने की प्रेरणा कहां से प्राप्त की जाती है? इसे कैसे लिखा जाता है ? कैसे पढ़ा जाता है?  तो इसके लिए अपनी बुद्धि के द्वार खोलने आवश्यक हैं। 
        बुद्धि के द्वार खोलने के लिए उन सभी पुस्तकों को पढ़ना चाहिए जिन पर घमासान विवाद हुआ हो, जिसे प्रायोजित या गैरप्रायोजित ढंग से प्रतिबंधित करने का प्रयास किया गया हो और जो देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद लिखी गई हों। क्यों कि अंग्रेजों के जमाने की प्रतिबंधित पुस्तकों से धांसू साहित्य का कोई लेना-देना नहीं है। इसलिए, विशेष रूप से बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध और इक्कीसवीं सदी की अब तक लिखी गई पुस्तकों में से विवादास्पद पुस्तकों को छांट-छांट कर पढ़ना चाहिए। इससे बुद्धि के द्वार न केवल खुल जाएंगे, बल्कि लम्बे समय तक खुले ही रहेंगे और बंद करने का प्रयास करने पर भी बंद नहीं होंगे। विचारणीय है कि जब बुद्धि के द्वार खुल जाएं तो यह सुगमतापूर्वक तय किया जा सकता है कि आपको किस प्रकार का धांसू साहित्य लिखना है। जी हां, धांसू साहित्य भी कई प्रकार का होता है-जैसे-अपनी कथा, पराई कथा और इतिहास कथा आदि-आदि।
           धांसू साहित्य लिखने के नुस्खे भी अनेक हैं किन्तु व्यक्ति को सदैव अनूभूत नुस्खों पर ही अमल करना चाहिए। इससे हानि की संभावना कम से कम रहती है। अनुभूत नुस्खों को अपनाने से यह लाभ रहता है कि आपको पहले ही पता रहता है कि आपको कब-कब, क्या-क्या, और कैसे-कैसे करना है। तो ध्यान दीजिए अनुभूत नुस्खा नंबर एक पर- 
                      तीसरा अध्याय

               नुस्खा नंबर एक


      यदि आप धांसू साहित्य के रूप में अपनी कथा लिखना चाहते हैं तो उसमें यह आवश्यक नहीं है कि सब कुछ अपने बारे में ही लिखा जाए अथवा सब कुछ सच-सच ही लिखा जाए। यदि अपनी कथा को धांसू बनाना है तो उसमें विख्यात-कुख्यात व्यक्तियों से अपने संबंधों पर सर्च लाईट से प्रकाश डालिए। यदि सर्च लाईट न जमे तो हेलोजन लैम्प से प्रकाश डाला जा सकता है। परायों के साथ अपने संबंधों का वर्णन करते समय अंतरंग संबंधों पर अधिक से अधिक शब्द खर्च कीजिए। इस बिन्दु पर आप शब्दों का जितना निवेश करेंगे, बाद में उतनी ही ख्याति पके हुए आमों की तरह टपाटप आपकी झोली में गिरेगी और आपको आम के आम ही नहीं वरन गुठली के दाम भी मिलेंगे। आप अपनी समस्त दुर्दशाओं और बेचारगी का खुलासा अपनी कथा में  कर सकते हैं। फिर भी आपकी दुर्दशा से अधिक काम की चीज साबित होगी ख्यात-कुख्यात व्यक्तियों से आपके अंतरंग संबंधों का रंगारंग वर्णन। इसे पढ़ कर पाठक तो हतप्रभ होंगे ही, वह ख्यात-कुख्यात व्यक्ति भी सन्नाटा खा कर रह जाएगा, जिससे आप अपने संबंधों का बखान अपनी पुस्तक में कर चुके होंगे। वह व्यक्ति इसे अपनी मान की हानि मानेगा और हाय-तौबा करता फिरेगा। 
     इसके बाद भले ही आपको अपनी पुस्तक से वह अंश हटवाना पड़े लेकिन तब तक आपकी पुस्तक धांसू पुस्तकों की पंक्ति में स्थान पा चुकी होगी और आप एक प्रतिष्ठित महान धांसू साहित्यकार बन चुके होंगे।

                                   क्रमशः ............
 

गुरुवार, जून 02, 2011

धांसू साहित्य लेखन के अनुभूत नुस्खे (व्यंग लेख)

- डॉ. शरद सिंह

         पहला अध्याय
     धांसू साहित्य की महिमा 

        हमारे बुजुर्गों ने तराजू तौल कर यह कहावत बनाई होगी कि जो चलता है, वह बिकता है और जो बिकता है वही चलता है।इस चलने और बिकने के समीकरण में साहित्य और साहित्यकार के बीच दिलचस्प केमिस्ट्रीपाई जाती हैं। यूं तो केमिस्ट्री विज्ञान की एक शाखा है जिसमें बहुत कठिन, दुरूह फामूर्ले पाए जाते हैं और जिसे प्रयोगशाला में सि़द्ध किया जाता है । किन्तु कुछ लोगों का मानना है कि आजकल केमिस्ट्री आवारा किस्म की हो गई है। वह फिल्मी हीरो-हिरोइनों के बीच चक्कर लगाती रहती है। साहित्य और साहित्यकार के बीच की केमिस्ट्री भी इस केमिस्ट्री से अलग नहीं है। साहित्य और साहित्यकार के बीच फिल्मी हीरो-हिरोइन की भांति भावुक, संवेदनशील और चर्चित करने योग्य केमिस्ट्री होती है। एक अच्छा साहित्यकार अपने साहित्य के लिए जीता है और उसका अच्छा साहित्य उसे अमर बना देता है। एक बुरा साहित्यकार अपने साहित्य के लिए मरता है और उसका बुरा साहित्य उसे सच्ची-मुच्ची का नहीं किन्तु साहित्य जगत के लिए परलोकधामवासी बना देता है। अब साहित्य और साहित्यकार एक-दूसरे के लिए अच्छे हैं या बुरे, यह तो उनके बीच की केमिस्ट्री पर निर्भर रहता है। अतः जिस साहित्यकार की केमिस्ट्री अपने साहित्य के साथ ठीक-ठाक रहती है, वह सुपर-डुपर हिट साबित होता है। खैर, यहां केमिस्ट्री-वेमिस्ट्री की चर्चा क्यों की जाए, जब बात चल रही हो धांसू साहित्य लेखन के अनुभूत नुस्खों की। 
           धांसू साहित्य में वह बात होती है जो और किसी प्रकार के साहित्य में नहीं होती है। यह साहित्यकार को पाताल से उठा कर आकाश में पहुंचा सकता है।  कहने का आशय यह है कि धांसू साहित्य वह होता है जो किसी साहित्यकार को रातो-रात आसमान का सितारा बना दे, पाठकों की आंखों का तारा बना दे और शेष साहित्यकारों को बेचारा बना दे। 
            जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि धांसू साहित्य वह साहित्य है जो साहित्यकार की लेखकीय नैया को पार लगाने की दम रखता है। धांसू साहित्य साहित्यकार को साहित्य जगत का महत्वपूर्ण व्यक्ति बना देता है। एक ऐसा महत्वपूर्ण व्यक्ति जो साहित्य पुरस्कारों और सम्मानों का निर्णायक बनता है, एक ऐसा महत्वपूर्ण व्यक्ति जो सर्वसम्मति से विद्वान माना जाता है, एक ऐसा महत्वपूर्ण व्यक्ति जिसे साहित्यिक सभाओं में अध्यक्ष अथवा मुख्य अतिथि बनाकर लोग स्वयं को धन्य अनुभव करते हैं। ऐसे महत्वपूर्ण व्यक्ति को अपना पंथ, अपनी धारा चलाने, अपनी शिष्य मंडली बनाने का स्वतः अधिकार मिल जाता है।
                             क्रमशः ............